पांच राज्यों के चुनाव क्यों खास, अंहम?

पांच राज्यों के चुनाव क्यों खास, अंहम?
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अजीत द्विवेदी
चुनाव आयोग ने पांच राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी है। इस बार भी आयोग ने एक दिन की बजाय पांच राज्यों के चुनाव को चार दिन में कराने का फैसला किया है। सात से 30 नवंबर के बीच मतदान होगा, जिसके लिए अक्टूबर के अंत में अधिसूचना जारी होगी। इस तरह चुनाव करीब सवा महीने चलेगा और नौ अक्टूबर से तीन दिसंबर तक करीब दो महीने आचार संहिता लगी रहेगी। सोचें, यही चुनाव आयोग पूरे देश में सारे चुनाव एक साथ कराने को तैयार रहता है! बहरहाल, इन चुनावों को लोकसभा चुनाव के लिए सेमीफाइनल कहा जा रहा है। हालांकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सेमीफाइनल जैसी कोई चीज नहीं होती है क्योंकि खेलों में सेमीफाइनल में हारने वाला फाइनल नहीं खेलता है जबकि राजनीति में सेमीफाइनल हारने वाला न सिर्फ फाइनल खेलता है, बल्कि कई बार जीत भी जाता है। जैसे ठीक पांच साल पहले इन्हीं पांच राज्यों में हुआ था।

2018 के विधानसभा चुनाव में इन पांचों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी हारी थी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो उसने 15 साल की अपनी निर्बाध सत्ता गंवाई थी। दोनों राज्यों में भाजपा 2003 से राज में थी और 2018 में हार कर सत्ता से बाहर हुई थी। राजस्थान में हर पांच साल पर राज बदलने का रिवाज कायम रहा था। उत्तर भारत के हिंदी भाषी तीनों राज्यों में कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। उधर तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की पार्टी ने लगातार दूसरा चुनाव जीता था। कांग्रेस दूसरे तो भाजपा चौथे नंबर की पार्टी रही थी। मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की जीत हुई थी और कांग्रेस व भाजपा दोनों एक एक सीट जीत पाए थे।

सो, 2018 में इन राज्यों के चुनाव नतीजों का मतलब था कि सेमीफाइनल भाजपा बुरी तरह से हारी थी और कांग्रेस विजेता रही थी। लेकिन सिर्फ छह महीने बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पूरे देश में बड़े बहुमत से जीती। इन पांच राज्यों में भी उसने शानदार जीत दर्ज की। राजस्थान में लोकसभा की सभी 25 सीटें उसने जीत ली। मध्यप्रदेश में भी वह सिर्फ एक सीट हारी और छत्तीसगढ़ में 11 में से नौ सीटें जीतीं, जहां विधानसभा में उसे 90 में से महज 15 सीटें मिली थीं। तेलंगाना में वह चार सीटों पर जीती। वहां विधायक से ज्यादा उसके सांसद जीते। इसलिए पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का आकलन सेमीफाइनल या फाइनल के नजरिए से करना ठीक नहीं होगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि चुनाव नतीजों का असर अगले साल के लोकसभा चुनाव पर नहीं होगा। निश्चित रूप से असर होगा। लेकिन अभी चुनाव घोषणा के बाद राजनीतिक विश्लेषण करते हुए किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से बचना होगा।

बहरहाल, इन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का पहला असर धारणा पर होगा। अभी यह धारणा बनी हुई है कि 10 साल से केंद्र में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी के लिए अगला चुनाव मुश्किल होने वाला है। यह धारणा 10 साल की एंटी इन्कम्बैंसी की वजह से है तो इस वजह से भी है कि विपक्षी पार्टियों ने ‘इंडिया’ नाम से अपना गठबंधन बनाया है और यह तय किया है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ हर सीट पर विपक्ष का भी एक ही उम्मीदवार होगा। यानी चुनाव को वन ऑन वन करना है। तभी भाजपा ने भी आगे बढ़ कर पुराने सहयोगियों को इक_ा करना शुरू किया है। उसने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के मुकाबले 38 पार्टियों के एनडीए की बैठक बुलाई, जिसमें सभी छोटे-बड़े नेताओं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मिले। अगर भाजपा इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करती है तो यह धारणा और मजबूत होगी कि ‘इंडिया’ के मुकाबले एनडीए कमजोर है और लोकसभा चुनाव में भाजपा को मुश्किल होगी। अगर भाजपा अच्छा प्रदर्शन करती है तो ‘इंडिया’ की और खास कर कांग्रेस की कमजोरी जाहिर होगी, जिसका असर विपक्षी गठबंधन पर पड़ेगा। विपक्षी पार्टियां कांग्रेस पर दबाव बनाएंगी और ज्यादा सीटों के लिए मोलभाव करेंगी। इससे लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन में फूट पड़ सकती है। हालांकि अगर कांग्रेस जीतती है तब भी कांग्रेस की ताकत बढ़ेगी और वह ज्यादा सीट पर लडऩा चाहेगी। उससे भी गठबंधन पर असर होगा। सो, कह सकते हैं कि इन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के असर का आकलन दो तरह से होगा। पहला, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति एंटी इन्कम्बैंसी का और दूसरा, दोनों गठबंधनों की ताकत व भविष्य की संभावना का।

गठबंधन की बात हो रही है तो यह समझना जरूरी है कि अभी इन पांचों राज्यों में ‘इंडिया’ या एनडीए गठबंधन चुनाव नहीं लड़ रहा है। तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुकाबला मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस में है। तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति का मुकाबला कांग्रेस से है, जबकि भाजपा मुकाबले को त्रिकोणात्मक बनाने में लगी है। मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट को कोई चुनौती नहीं है। चुनाव की घोषणा के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का आम आदमी पार्टी या समाजवादी पार्टी से कोई तालमेल बनता है या नहीं यह देखने को बात होगी। अभी आप और सपा दोनों अपने उम्मीदवार अलग अलग घोषित कर रहे हैं। बहरहाल, गठबंधन बने या न बने लेकिन पांच राज्यों का यह चुनाव धारणा के स्तर पर ‘इंडिया’ बनाम एनडीए माना जाएगा और इसके नतीजों का आकलन उस आधार पर होगा।

इन चुनावों में नरेंद्र मोदी के करिश्मे की परीक्षा भी होनी है। यह पिछले 20 साल में पहली बार हो रहा है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी बिना कोई चेहरा  पेश किए लड़ रही है। 2003 से राजस्थान में हर चुनाव भाजपा ने वसुंधरा राजे के चेहरे पर और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह के चेहरे पर लड़ा है। 2003 में मध्य प्रदेश में चुनाव उमा भारती के चेहरे पर हुआ था लेकिन 2008 से तीनों चुनावों शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर हुए। लेकिन इस बार तीनों राज्यों में भाजपा ने प्रदेश के क्षत्रप नेताओं की बजाय प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा दांव पर लगाया है। उन्होंने राजस्थान की एक रैली में कहा भी कि कमल का फूल ही भाजपा का चेहरा है। इन दिनों कमल के फूल का मतलब नरेंद्र मोदी का चेहरा होता है। चुनाव की घोषणा से पहले उन्होंने हर जगह धुआंधार प्रचार किया है। भाजपा लोकसभा की तरह उनके चेहरे और अमित शाह के प्रबंधन पर चुनाव लड़ रही है। सो, मोदी के करिश्मे और शाह के प्रबंधन दोनों की परीक्षा इन चुनावों में होगी।

भाजपा से उलट कांग्रेस इस बार चार राज्यों में प्रादेशिक क्षत्रपों के चेहरे पर लड़ रही है। मध्य प्रदेश में कमलनाथ, राजस्थान में अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और तेलंगाना में रेवंत रेड्डी के चेहरे पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। सो, प्रादेशिक क्षत्रपों को अपने आप को प्रमाणित करना है। ठीक वैसे ही जैसे कर्नाटक में सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार ने अपने को प्रमाणित किया। अगर मुद्दों की बात करें तो पहला मुद्दा मुफ्त की रेवड़ी का है, जो सभी सरकारों ने बांटा है और जो विपक्ष में है उसने बांटने का वादा किया है। इसके अलावा भाजपा के डबल इंजन की सरकार, विश्व गुरू भारत, हिंदुत्व व राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व के बरक्स कांग्रेस की ओर से जाति जनगणना, सामाजिक न्याय और आरक्षण का मुद्दा है। कांग्रेस और राहुल गांधी ने जाति गणना को बड़ा मुद्दा बनाया है। चुनाव की घोषणा से दो दिन पहले राजस्थान में जाति गणना  की अधिसूचना जारी हुई। सभी राज्यों में कांग्रेस ने वादा किया है कि सरकार में आने पर वह जाति गणना कराएगी। इससे वह अन्य पिछड़ी जातियों में एक मैसेज बनवाना चाहती है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसके मुख्यमंत्री भी पिछड़ी जाति से आते हैं। सो, इस मुद्दे की परीक्षा इन चुनावों में होनी है।

राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के क्रम में पिछले साल राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में काफी समय रहे थे। सो, कांग्रेस को उम्मीद है कि उस यात्रा का कुछ फायदा पार्टी को होगा। कुल मिला कर पांच राज्यों के चुनाव में नेतृत्व के साथ साथ रणनीति और लोकसभा चुनाव के लिहाज से अहम मुद्दों की परीक्षा होगी। तभी नतीजों से निश्चित रूप से धुंध छंटेगी और लोकसभा चुनाव के मुकाबले की तस्वीर स्पष्ट होगी।

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