गढ़वाली भाषा को नया आयाम दे रही सुमन-भगवान की जोड़ी, गढ़वाली घपरोल में हंसी-हंसी से दे जाते गंभीर संदेश

गढ़वाली भाषा को नया आयाम दे रही सुमन-भगवान की जोड़ी, गढ़वाली घपरोल में हंसी-हंसी से दे जाते गंभीर संदेश
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– अपनी माटी और थाती को समर्पित दोनों कलाकारों को सलाम

देहरादून । लगभग एक सप्ताह पहले की बात होगी। चंडीगढ़ से गढ़वाली हास्य कलाकार भगवान चंद का फोन आया कि देहरादून आ रहा हूं और मुझसे मिलना है। मैं अभिभूत हो गया। पत्रकार होने पर हम नामी-गिरामी लोगों से अक्सर मिलते हैं। मुलाकात भी होती है। इसे हम सामान्य तौर पर लेते हैं, लेकिन भगवान चंद उन चुनिंदा हस्तियों में है, जो अपनी माटी और थाती के लिए समर्पित हैं। मुझे 6 अगस्त का बेसब्री से इंतजार था। हिमाद्रि फिल्म का कार्यक्रम था। पहली बार कलाकार भगवान चंद और सुमन गौड़ से मुलाकात हुई। बहुत सी बातें भी हुई। उनकी टीम के अन्य सदस्यों से भी मिला। मैं सच में उस दिन इन दोनों कलाकारों से मिलकर बहुत रोमांचित हुआ।

हास्य कलाकार भगवान चंद टिहरी के हिन्डोलाखाल के पंचुर गांव के हैं। हिन्डोलाखाल से 12वीं पास करने के बाद 1985 में पढ़ने के लिए चंड़ीगढ़ गये और वहां उन्हें थियेटर से लगाव हो गया। भगवान चंद में गजब की अभिनय प्रतिभा है। उन्होंने कई हिन्दी और पंजाबी नाटकों में भी अभिनय किया। नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में रपटरी भी की। वहां उनकी अभिनय प्रतिभा और सोच में निखार आ गया। उन्होंने वर्ष 2000 में पहली बार गढ़वाली फिल्म जीतू बग्ड़वाल में अभिनय किया। कई फिल्मों में अभिनय के बाद उन्होंने रामी-बौराणी फिल्म भी बनाई लेकिन मामला पैसे के कारण खटाई में पड़ गया।

भगवान चंद बताते हैं कि 2015 में तय कर लिया था कि कैसी भी दिक्कत हो, गढ़वाली भाषा का प्रचार-प्रसार करने में कोई कमी नहीं करेंगे। जो ठाना, वो किया। आज वह अपने दम पर गढ़वाली भाषा का संरक्षण और संवर्द्धन कर रहे हैं। उनके टयूब पर करोड़ से भी अधिक दर्शक हैं। सुमन गौड़ देहरादून के बालावाला में रहती हैं, लेकिन उन्होंने अभिनेता भगवान चंद की गढ़वाली भाषा के संवर्द्धन में हर कदम पर साथ दिया है। वह कहती हैं कि महीने में एक या दो दिन शूटिंग करते हैं। स्क्रिप्टिंग पहले से तय होती है। कोशिश होती है कि तीन-चार मुद्दो पर एक साथ शूट कर लिया जाएं।

यदि लोकगायक गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी पहाड़ के प्राण हैं तो भगवान चंद शरीर हैं जो गढ़वाली भाषा का प्रचार-प्रसार ऐसे समय में कर रहे हैं जब सरकारें भी मूक हैं और भाषाओं की दुकान चला रहे लोग और संस्थाएं भी। भगवान चंद और सुमन गौड़ के इस भगीरथ प्रयास को सलाम।

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