लोकसभा के चुनावी मुद्दों की परीक्षा

लोकसभा के चुनावी मुद्दों की परीक्षा
Spread the love

अजीत द्विवेदी
पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव किसी भी राज्य के सामान्य चुनाव की तरह नहीं है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रहे इन चुनावों में ऐसे मुद्दों या ऐसे एजेंडों की परीक्षा होनी है, जिन पर लोकसभा का चुनाव लड़ा जाएगा। भाजपा अब तक जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ती रही है उनमें वह कुछ नए मुद्दे जोड़ती चलती है, उन सबकी परीक्षा इन चुनावों में होगी। साथ ही विपक्षी पार्टियों के गठबंधन यानी ‘इंडिया’ की ताकत के साथ साथ उनकी ओर से उठाए गए नए और पुराने मुद्दों की भी परीक्षा होगी। ध्यान रहे जुलाई में ‘इंडिया’ के गठन के बाद पहला चुनाव होने जा रहा है और इसके नतीजों से गठबंधन का भविष्य तय होना है। इसी तरह गाजे-बाजे के साथ आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की विश्वगुरू या विश्वमित्र की जो छवि गढ़ी है उसके बाद भी पहली बार चुनाव होने जा रहा है। ऐसे समय में यह चुनाव हो रहा है, जब राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास की खबरों की खुशबू फिजां में तैर रही है और पांच सौ साल बाद रामलला के अपने घर में विराजने की हवा बनाई जा रही है।

तभी ‘इंडिया’ और एनडीए या कांग्रेस और भाजपा के बीच जोर-आजमाइश में स्वाभाविक तौर पर पहली परीक्षा दोनों गठबंधनों या दोनों बड़ी पार्टियों की ताकत की परीक्षा है। किसने किस तरह से तैयारी की, कैसे उम्मीदवारों का चयन किया, किस तरह से प्रचार किया और किस तरह से चुनाव का प्रबंधन किया, इसकी परीक्षा है। लेकिन इसके साथ साथ इन चुनावों में उन मुद्दों की भी परीक्षा होगी, जिन पर अगला लोकसभा चुनाव होना है। ऐसे चार या पांच मुद्दे हैं, जिनके बारे में फिलहाल यह कहा जा सकता है कि दोनों गठबंधनों की ओर से अगले चुनाव में इनका इस्तेमाल होगा। ये मुद्दे हैं महिला आरक्षण, जाति गणना, मुफ्त की रेवड़ी, नेतृत्व और हिंदुत्व व राष्ट्रवाद। किसी न किसी रूप में ये मुद्दे पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में आजमाए जाएंगे। इनकी सफलता या विफलता से तय होगा कि अगले लोकसभा चुनाव में मुद्दे ये ही रहेंगे या इसमें कुछ प्लस-माइनस होगा।

अगर विपक्ष के कोर मुद्दे की बात करें तो वह जातीय गणना और आरक्षण का है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुला कर महिला आरक्षण कानून पास कराया है। हालांकि अभी महिला आरक्षण लागू नहीं हो रहा है लेकिन इस कानून के दम पर प्रधानमंत्री महिला हितैषी होने का दावा कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी ने भी इस कानून का समर्थन किया था और उसके नेता भी इस कानून का श्रेय ले रहे हैं लेकिन साथ ही वे इस बात का विरोध भी कर रहे हैं कि इसमें पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं की गई है। इस आधार पर विपक्षी पार्टियां केंद्र सरकार और भाजपा को पिछड़ा विरोधी बता रही हैं। महिला आरक्षण के साथ साथ जाति गणना का मुद्दा भी जुड़ा हुआ है। बिहार में जाति गणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद विपक्षी पार्टियों ने पूरे देश में जाति गणना कराने का ऐलान किया है। कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में इसका प्रस्ताव पास कराया गया और पिछड़ी जातियों की राजनीति की मशाल लेकर जातीय नेताओं के आगे आगे राहुल गांधी चल रहे हैं। सो, जाति गणना और आरक्षण की सीमा बढ़ाना कांग्रेस का कोर मुद्दा है बाकी सारे मुद्दे इसके ईर्द-गिर्द पूरक की तरह हैं। अगर पांचों राज्यों में कांग्रेस को इसका फायदा मिलता है तो वह और आक्रामक होगी। अगले लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस शासित राज्यों में जातीय गणना कराने और जातियों की संख्या के हिसाब से आरक्षण की सीमा बढ़ाने का फैसला हो सकता है। फिर राहुल गांधी का ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का नारा लोकसभा तक चलेगा।

अगर भाजपा के कोर मुद्दे की बात करें तो वह नेतृत्व का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व का डंका भाजपा की ओर से बजाया जा रहा है। जी-20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन और अफ्रीकी संघ को उसका सदस्य बनाने के बाद भाजपा और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से बार बार भारत को विश्वमित्र कहा जा रहा है। भारत को ग्लोबल साउथ का लीडर बताया जा रहा है। मोदी की हिंदुवादी, राष्ट्रवादी नेता की छवि पहले से रही है। अब विश्व के सबसे बड़े नेता की छवि गढ़ी गई है। इसकी परीक्षा पांच राज्यों में होनी है और इसलिए होनी है क्योंकि पांचों राज्यों में भाजपा उनके चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने इस बार किसी राज्य में मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं घोषित किया है। इसके उलट कांग्रेस ने सभी राज्यों में चुनाव प्रादेशिक क्षत्रपों के हवाले छोड़ा है। सो, मोदी बनाम प्रादेशिक क्षत्रप चुनाव हो रहा है। एक बनाम अन्य का मुकाबला है। लोकसभा चुनाव में भी विपक्ष कोई चेहरा पेश नहीं करेगा, जबकि भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी का चेहरा होगा। सो, उस चुनाव का रिहर्सल राज्यों में होगा।

इन दो के अलावा बाकी मुद्दे बहुत कॉमन हो गए हैं। उसमें पक्ष और विपक्ष का भेद मिट गया है। ऐसे मुद्दों में मुफ्त की रेवड़ी और हिंदुत्व का जिक्र किया जा सकता है। दोनों पार्टियों के बीच इन मुद्दों पर एक राय है। हालांकि भाजपा की ओर से कांग्रेस को हिंदू विरोधी ठहराने की कोशिश हो रही है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने राजस्थान की सभा में कहा कि कांग्रेस के राज में हिंदू त्योहारों पर पथराव होता है। उन्होंने जोधपुर में एक हिंदू दर्जी की हत्या का भी जिक्र किया। दूसरी ओर कांग्रेस के प्रदेश के नेता भी हिंदुवाद के एजेंडे को छोड़ नहीं रहे हैं। मध्य प्रदेश में कमलनाथ अपने को बड़ा हिंदुवादी साबित करने में लगे हैं। उन्होंने अपने क्षेत्र में बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेंद्र शास्त्री को बुला कर उनका दिव्य दरबार लगवाया। सनातन विरोध का माहौल न बने इसके लिए उन्होंने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की भोपाल में प्रस्तावित रैली रद्द करा दी। ऐसे ही छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार गाय का गोबर और गोमूत्र खरीद रही है तो राम वन गमन पथ भी बनवा रही है। अगर इन राज्यों में कांग्रेस को कामयाबी मिलती है तो अगले लोकसभा चुनाव में नरम हिंदुत्व के रास्ते पर ही कांग्रेस भी चलती दिखेगी।

मुफ्त की रेवड़ी मामले में भी दोनों पार्टियों की राजनीति एक जैसी है। कांग्रेस ने कर्नाटक की तर्ज पर मध्य प्रदेश में महिलाओं को दो हजार रुपए महीना देने का ऐलान किया तो शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने लाड़ली बहना योजना शुरू करके महिलाओं को साढ़े 12 सौ रुपए महीना देना शुरू भी कर दिया। कांग्रेस ने राजस्थान में पांच सौ रुपए में रसोई गैस सिलेंडर देने का ऐलान किया तो केंद्र की मोदी सरकार ने उज्ज्वला के तहत मिलने वाले रसोई गैस सिलेंडर पर सब्सिडी बढ़ा कर दो सौ कर दी, जिससे सभी लाभार्थियों को छह सौ रुपए में सिलेंडर मिलने का रास्ता साफ हो गया। अब कांग्रेस नर्सरी के बच्चों को भी हर महीने नकद पैसे देने का वादा कर रही है। जिस राज्य में जिसकी सरकार है उसने चुनावी साल में खजाना खोल दिया तो जो विपक्ष में है वह खजाना खोलने का वादा कर रहा है। इसकी परीक्षा भी चुनाव में होगी। अगर ज्यादा से ज्यादा मुफ्त की रेवड़ी देने का वादा करने वाला कामयाब होता है तो अगले लोकसभा चुनाव में यह सबसे बड़ा मुद्दा होगा।

admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *